Aarti Kunj Bihari Ki

आरती कुंज बिहारी की

आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥

गल्ले में बैजंती मात्रा, बजावे मुरल्ली मधुर बाला,

श्रवण मेँ कुंडल झलकाला।

नन्‍्द के नन्द, श्री आनंद कंद, मोहन बृज चंद,

राधिका रमण बिहारी की, श्री गिरीधर कृष्ण मुरारी की॥ आरती...

 गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली,

लतन में ठाढ़े बनमाली।

अमर सी अलक, कस्तूरी तित्रक, चंद्र सी झत्रक,

लल्नित छवि श्यामा प्यारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ आरती..

कनकमय मोर मुकुट बित्रसे, देवता दर्शन को तरसे,

गगन सों सुमन रसी बरसे।

बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वाल्रिन संग

अतुत्र रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ आरती..

जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्री गंगा

(07 - सकल्न मत्र हारिणि श्री गंगा)

स्मरन ते होत मोह भंगा।

बसी शिव शीष, जटा के बीच, हरै अघ कीच,

चरन छवि श्री बनवारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ आरती..

चमकती उज्ज्वत्र तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू

चहुं दिशी गोपि ग्वात्र धेनू।

हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद

टेर सुन दीन भिखारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ आरती..


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