कल्पना चावला: सौरमंडल यात्री और उच्चाधिकारी की संगठन करने वाली महिला


कल्पना चावला: सौरमंडल यात्री और उच्चाधिकारी की संगठन करने वाली महिला

कल्पना चावला, भारत में पैदा हुई एक महिला थी जिसने सौरमंडल में यात्री और उच्चाधिकारी की संगठन करने के लिए देश की सीमा को पार किया। उनका जन्म 16 मार्च, 1962 को हुआ था और उनकी मौत गौटम सेना सुपरसोनिक उड्डयन यान क्रैश में 2003 में हुई थी। वे गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में पैदा हुई थीं और अपने बचपन कापीटल शहर में बिताई थी।

कल्पना ने मिशन फीजी (1989), चालेंजर स्थानयान (1993) और डिस्कवरी (1997) मिशन में अपनी उपस्थिति के लिए प्रशंसा पाई। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पूरे प्रभारी स्थानयान के लिए नियुक्ति ग्रहण की थी। 16 नये आंतरदेशीय उपग्रहों की यात्रा में चालेंजर और ஸ்பிஸ் शटल दोनों का प्रयोग हुआ था।

उनके साथी यात्री एलेन डेविसन और सोगोरो मुकाइये बनाना उन्हें एक अद्वितीय संघर्षात्मक यात्रा में समर्थन करते थे। कल्पना चावला उन महिलाओं में से एक थी जो अपनी अद्वितीय क्षमताओं के बावजूद सौरमंडल यात्रा करने में सफल हुईं।

कल्पना का बचपन से ही लोगों द्वारा देखभाल और मेहनत का बड़ा महसूस किया जा रहा था। वे बचपन से ही जागरूक थीं कि महिलाओं के लिए सामाजिक और पारम्परिक संरचनाएं किस तरह साधारणतया पुरुषों के लिए उपलब्ध होती हैं। उन्हें खुद प्रेरणा लेने वाली गतिविधियों में खुचरा देखकर वे भी महिलाएं ऐसे ही कर सकती हैं।

उन्होंने भी अपने मुकाबले के पे लाने वालें महिलाओं की बढ़ती हुई प्रतिष्ठा को देखा है। श्रीमती चावला अपने बचपन के दिनों में ही विज्ञान के क्षेत्र में अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करती थीं और अपनी यात्राओं के दौरान भी देखा गया है इन क्षेत्र में नई परंपराओं का निर्माण करती हैं।

कल्पना चावला अपनी मौत के बाद भी आंतरविद्यालयों में एक महिला इंजीनियर के रूप में पुरस्कृत की गई हैं और इसके साथ ही 5 वर्षों तक उन्हें आपराधिक न्याय ओर्गनाइजेशन से जुड़ा रहा है। उन्होंने सोलरचर्च के प्रथम अध्ययन को भी प्राथमिकता दी है और यही वजह है कि उन्होंने वैज्ञानिकी के क्षेत्र में पदचिन्हंत करने के लिए सम्मानित किया गया है।

इसलिए, कल्पना चावला ने एक महिला नहीं, एक उच्चाधिकारी और सौरमंडल यात्री के रूप में भी अपनी अवधारणा को बढ़ावा दिया है। उन्होंने जीवन के हर क्षण में कठिनाइयों की सामरिकता और संघर्ष को स्वीकार किया है और इसे अपनी सफलता की नींव बना दिया है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि किंवदंती के अंदर सपने पूरे करने की ताकत होती है।

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